जिस प्रकार एकादशी व्रत भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी को समर्पित हैं, उसी प्रकार प्रदोष व्रत भगवान शिव और माँ पार्वती को समर्पित है. इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती हैं । गुरु प्रदोष व्रत, हिन्दू पंचांग के अनुसार एक बार इंद्र और वृतासुर ने अपनी -अपनी सेना के साथ एक – दूसरे से युद्ध किया । देवताओं ने दैत्यो को हरा दिया और उन्हें लड़ाई में पूरी तरह से नष्ट कर दिया। वृतासुर यह सब देखकर बहुत क्रोधित हुआ और वह स्वयं लड़ने के लिए आ गया अपनी शैतानी ताकतों के साथ उनसे एक विशाल रूप धारण कर लिया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था और वह देवताओं को धमकाने लगा देवताओ को अपने सर्वनाश की आशंका हुई और वह मारे जाने के डर से भगवान बृहस्पति की शरण में चले गए । भगवान बृहस्पति हमेशा सबसे शांत स्वभाव वाले है । बृहस्पति जी ने देवताओं को धैर्य बंधाया और वृतासुर की मूल कहानी बताना शुरू किया – जैसे की वह कौन है या वह क्या है ?
बृहस्पति के अनुसार, वृतासुर एक महान व्यक्ति था – वह एक तपस्वी था, और अपने काम के प्रति बेहद निष्ठावान था । वृतासुर ने गंधमादन पर्वत पर तपस्या की और अपने तपस्या से भगवान शिवशंकर को प्रशन्न किया । उस समय में बृहस्पति जी के अनुसार , चित्ररथ नाम एक राजा था । एक बार चित्ररथ अपने विमान पर बैठकर कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान किया । कैलाश पहुंचने पर उनकी दृस्टि माँ पार्वती जी पर पड़ी , जो की उसी आसान पे भगवान शिव के बाई ओर विराजमान थी । शिव के उसी आसान पर बैठा देखकर , उन्होंने इस बात का मजाक उड़ाया की , उसने कहा की मैंने सुना है की, जैसे मनुष्य मोह -माया के चक्र में फस जाते हैं , वैसे स्त्रियों पर मोहित होना कोई साधारण बात नहीं हैं , लेकिन उसने ऐसा कभी नहीं किया, अपने जनता से भरे दरबार में राजा किसी महिला को अपने बराबर नहीं बिठाते ।
इस बात को सुनकर भगवान भोलेनाथ ने कहा दुनिया के बारे में उनके विचार अलग और काफी विविध हैं । शिव जी ने उनके कहा उन्होंने दुनिया को बचाने के लिए जहर भी पिया लिया था , इस बात को सुनकर माँ पर्वती जी क्रोधित हो गयी तथा उन्होंने चित्ररथ को श्राप दे दिया । इस श्राप के कारण चित्र रथ एक राक्छस के रूप में धरती पर वापस आ गया ।